Kavita Jha

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आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022

भाग-14
सावन की आत्मा को शरीर से मुक्ति के बाद भी बचपन की उन यादों से मुक्ति नहीं मिल पाई थी जब वो साधना से मिला था। जहाँ दीपा की आत्मा हवन के धूएंँ से परेशान हो रही थी वहीं सावन उस घटना को याद कर रहा था जब उसने साधना को मज़ाक में ही पेड़ से धक्का दिया और वो तालाब में गिर गई । तब किस तरह उसने अपनी जान की परवाह किए बिना तालाब में कूद कर साधना की जान बचाई वो एहसास उसकी आत्मा अब भी महसूस कर रही है।
गतांक से आगे....

शादी की वही रस्में दुबारा निभा रही थी साधना उसी के साथ जिससे चार दिन पहले ही शादी हुई थी और इन चार दिनों में उसने एक बार भी उसका चेहरा नहीं देखा था। दिनभर घर के सभी लोग इतने व्यस्त थे कि किसी को मुंँहबजी की रस्म का ध्यान ही नहीं रहा पूरे दिन।

दिन में भटफोड़ी की रस्म में जब साधना ने पूजा घर में बने कोबर (केले के पत्तों से बना घर) जिसमें उसे चार दिनों से सुबह शाम दीप जलाकर बैठाया जाता था  उसको गोबर से लीप कर एक मटकी में गोबर और कीचड़ रखा । फिर रस्म के अनुसार वो अपने सिर पर रखकर आंँगन में खड़ी हो गई।
 घर की सभी महिलाएं गीत गा रही थी, बच्चे और घर के सभी लोग वहीं आंँगन में बैठे थे।इस रस्म का आनंद उठाने।जो देवर भाभी के बीच होता है, रूठना मनाना।
संजय को इस रस्म के दौरान भाभी को कुछ उपहार देना था तो इसके लिए भी शीला जी ने चाँदी की पायल रखी थी जो संजय अपने हाथ से साधना को देता जब वह मटकी टूटने पर रूठ कर बैठ जाती।

 दीपा ने जब देखा सब खुश हैं और इन्जाय कर रहें हैं बस यही तो उसकी आत्मा को जलाने के लिए काफी था। उसने अपनी बुरी शक्तियों के प्रयोग से उस मटकी में रखे गोबर और कीचड़ को ढ़ेर सारे अर्थ वॉर्म (केंचुआ) में बदल दिया। 

साधना को दुनिया में किसी चीज से सबसे ज्यादा डर लगता था तो वो था केंचुआ। उसे पता था कि वो इंसानों को कोई हानि नहीं पहुंचाता है बल्कि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाता है ।पर सब जानते हुए भी, केंचुआ देखते ही डर के मारे उसके रोंगटे खड़े हो जाते और उसे तेज बुखार चढ़ जाता।पता नहीं यह बात दीपा की आत्मा कैसे जान गई थी?

ओह!वो आत्मा के रूप में एक्सरे मशीन बन गई थी। जो इंसान के अंदर की बात समझ जाती थी।

जैसे ही संजय , साधना के देवर ने लाल कपड़े में लपेटी छड़ी से साधना के सिर पर रखी मटकी तोड़ी तो मटकी का कीचड़ जो केंचुएं में परिवर्तित हो गया था वो मटकी फूटते ही भड़भड़ाकर नीचे जमीन पर बिखर गए और रेंगने लगे।
यह देख बच्चे तो ताली बजाने लगे और बड़े भी अपनी हंँसी नहीं रोक पाए। सबको लगा यह संजय की शरारत हैं नई भाभी को डराने की।
दीपा यह देख हैरान थी,अरे! यह क्या हो गया सब तो हंस रहें हैं कोई डर क्यों नहीं रहा??

" संजय तुम अपना बचपना कब छोड़ोगे। इतने बड़े हो गए और अभी भी बच्चों जैसी शरारतों से बाज़ नहीं आते।" सबको हंँसता देख गोविंद का पारा चढ़ गया। और उसने सबके सामने संजय को उसी छड़ी से मारा। 

वो बार बार कह रहा था," भईया यह मैंने नहीं किया। मुझे नहीं पता यह केंचुएं इस मटकी में कैसे आए।"

जैसे ही साधना ने घुंघट के नीचे से देखा एक केंचुआ उसके पैर पर रेंग रहा है, वो जोर का चीखी.. मम्मी... 
...और सभी केंचुएं अपनी तरफ आते देख बेहोश हो जमीन पर गिर गई।उसका शरीर तपने लगा, तेज बुखार हो गया था उसे केंचुएं के डर से। 

दीपा की आत्मा को शांति मिल रही थी यह देखकर । अब आज किसी हालत में इसकी सुहागरात तो नहीं बन पाएगी। आज क्या कई दिनों तक यह बिस्तर से नहीं उठ पाएगी। अपने आप से ही बातें कर ठहाका मार हंस रही थी।

"केंचुएं से डरती है काकी... "
...एक सुर में गाते हुए घर के सभी बच्चे ताली बजा रहे थे और नाच रहे थे।

"अरे! लगता है इसने पहली बार चाली (केंचुआ ):देखा होगा और यह समझ रही होगी यह डसने वाला सांँप है।" सिद्धार्थ की बड़ी बहन हंँसते हुए बोली।

इसे नहीं पता यहाँ के कई आदीवासी लोग तो इसे पताल गेंची के नाम से जानते हैं और मछली की तरह इसे भी खाते हैं। खेतों के लिए तो यह वरदान है।

सिद्धार्थ ने भी जब साधना के पैर पर केंचुएं को रेंगते देखा और वो मम्मी.. को पुकारने लगी तो वो भी अपनी हंँसी रोक नहीं पाया लेकिन जब वो बेहोश हो गई और बुखार से तपने लगी तो उसे भी बहुत बुरा लग रहा था उसके लिए। वो अब उसी की जिम्मेदारी तो है।
साधना की माँ को तो उसके परिवार वाले बेहोशी की हालत में ही उसे दिल्ली लेकर चले गए थे। 
उसका अपना यहाँ कौन था जो उसके इस डर को बताता। 

वो जानता ही कहां था साधना को!
उसकी पसंद नापसंद और उसे किन चीजों से डर लगता है और किन चीजों से एलर्जी है कुछ भी तो पता नहीं था उसे ।

सिद्धार्थ उसे गोद में उठाकर कमरे तक ले गया और बिस्तर पर लिटा दिया फिर डॉक्टर को फोन करके बुला लिया।
डॉक्टर के इंजेक्शन लगाने के बाद वो होश में आई।
उसका शरीर तप रहा था।
उसे ठंडे पानी की पट्टियां सर पर रखने के लिए डॉक्टर ने बताया और दवाई का पुर्जा लिख दिया।
" किसी चीज को देखकर डर गई थी। और शायद खून की कमी है। कुछ टैस्ट लिख रहा हूँ करवा कर  मेरे पास रिपोर्ट लेकर आईए।"
सिद्धार्थ उसके सिरहाने में बैठा ठंडे पानी की पट्टियां उसके सिर पर रख रहा था ।
दीपा की चाल उल्टी पड़ रही थी कहाँ वो साधना को सिद्धार्थ से दूर करने के लिए यह सब कर रही थी और कहाँ उसकी इन्हीं हरकतों से वो उसके और नज़दीक़ आ रहा था।

कुछ ही घंटों में इंजेक्शन और दवाई के असर से उसका बुखार ठीक हो गया था पर वो डरी सहमी सी बैठी थी।
सिद्धार्थ ने उसे दूध साबूदाने का गिलास पकड़ाते हुए कहा," इसे पी लीजिए, अच्छा लगेगा । थोड़ी एनर्जी आएगी तो डर भाग जाएगा।अच्छा यह बताइए इस छोटे से जीव से आप इतना क्यों डरती हैं?"

 

क्रमश:

आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई। 
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है।

कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता 

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2 Comments

Khushbu

05-Oct-2022 03:33 PM

Nice

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Gunjan Kamal

28-Sep-2022 03:58 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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